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वहाँ जहाँ कोई रास्ता नज़र नहीं आता / फूलचन्द गुप्ता
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वहाँ जहाँ कोई रास्ता नज़र नहीं आता
आपके सिवा कोई दूसरा नज़र नहीं आता
दूर, तन्हाईयों में जब भी भटक जाता हूँ
आप होते हैं, बस, ख़ुदा नज़र नहीं आता
कुछ तो होगा ही आपके आने का मकसद
किसी के ख़्वाब में कोई ख़ामख़ा नज़र नहीं आता
दर्द उठता है तो पत्थर पे सिर पटकता हूँ
वर्ना इन पत्थरों में मुझे देवता नज़र नहीं आता
चन्द लफ़्ज़ों में ख़त्म हो जाती है दास्ताँ सबकी
बन्द जिल्दों में सादा सफ़ा नज़र नहीं आता