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जिसको पराई पीर पे रोना नहीं आया / फूलचन्द गुप्ता

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जिसको पराई पीर पे रोना नहीं आया
ऐसे बहाइम को बशर<ref>इनसान, आदमी, मनुष्य, मानव</ref> होना नहीं आया

घर में गया तो हाथ में हर चीज़ आ गई
पल को मिले सुकून, वो कोना नहीं आया

अपने बदन की गन्ध, कमीज़ों के दाग़ को
मुझको पराए ख़ून से धोना नहीं आया

तुमको मिली थी आग वसीयत के रूप में
तुमको कभी अलाव पे सोना नहीं आया

कहते हैं, वो मसीह हैं, लाए पयाम हैं
उनको अभी सलीब तो ढोना नहीं आया

रुत है, तमाम खेत हैं, हाथों में बीज हैं
हमको किसी किसान-सा बोना नहीं आया

शब्दार्थ
<references/>