बनके गाज गिरती है दुआ ए हुकूमत
जलती है, राख करती है हवा ए हुकूमत
कहने को तो हक़ीम लुकमान अली है
सबको तबाह करती है दवा-ए-हुकूमत
लगती है यह अज़ान ओ मन्दिर के नाद-सी
फ़ित्ना तमाम करती है सदा ए हुकूमत
अफ़सोस ! उफ़ ये सहरा, बागात, सब्ज़ाखेत
हर सब्ज़ा ख़ाक करती है फज़ा ए हुकूमत
बेइल्म माँझी और यह कमज़ोर सफ़ीना
अब एक लहर और, बस, कज़ा ए हुकूमत
अब सावधान ! सावधान ! सावधान ! बस !
हर रोग, हर बला है यह वबा ए हुकूमत