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तहज़ीब का यह कौन-सा मक़ाम आ गया / फूलचन्द गुप्ता

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तहज़ीब का यह कौन-सा मक़ाम आ गया
जिसके बहुत क़रीब था वो उसको खा गया

हंसकर कहा ‘गजाला’, पहलू में रेंग आया
शानों में बोसा लेके, गरदन चबा गया

मम्मी मेरे क़रीब थीं, पापा थे आस-पास
कहकर मुझे फ़रिश्ता, वो हैवाँ उठा गया

मज़बूत डालियाँ थीं, दमदार था तना
कमज़ोर घोसलों को तूफाँ उड़ा गया

निकला था ईदगाह को दिल में ख़ुशी लिए
पहुँचा जो ईदगाह तो, खूँ से नहा गया