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ज़िन्दा तमाम उम्र हूँ उज़रत के सहारे / फूलचन्द गुप्ता
Kavita Kosh से
ज़िन्दा तमाम उम्र हूँ उज़रत<ref>मज़दूरी, भृति, पारिश्रमिक</ref> के सहारे
रोटी मिली तो ख़ार<ref>काँटा, फाँस, द्वेष, जलन</ref> ओ नफ़रत के सहारे
वे बह्न<ref>समुद्र, सागर</ref> तक गए नहीं, न रेगज़ार<ref>रेगिस्तान</ref> तक
है अब्र<ref>बादल, घटा, बदली, मेघ</ref> उनके मुश्त में<ref>मुट्ठी</ref> दौलत के सहारे
फ़ौलाद से बनी हुई, मज़बूत रीढ़ है
तुम बेल बन गए महज फितरत के सहारे
पा के वगैर देखिए मज़बूत, पाइन्दा<ref>हमेशा, सदैव, सदा, सर्वदा, निरन्तर</ref>
ऊँचा दिखे वो दोश ए जल्वत<ref>जन समर्थन</ref> के सहारे
आ चल निकल पड़ें सफ़र में कायनात के
केवल मिलेगी जीत अब उल्फ़त के सहारे
शब्दार्थ
<references/>