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जो बोलूँगा, सच बोलूँगा / फूलचन्द गुप्ता
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जो बोलूँगा, सच बोलूँगा
सच को खुरच-खुरच बोलूँगा
आएगी जब खूँ की नौबत
दिल को उलच-उलच बोलूँगा
झूठ, फ़रेब, दम्भ, लालच के
चक्रव्यूह से बच बोलूँगा
नई व्यवस्था होंगी उसमे
नई संहिता रच बोलूँगा
अमृत मिल जाए तुझको, विष
मुझको जाए पच बोलूँगा