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धुन्ध के उस पार राहें हैं / फूलचन्द गुप्ता

धुन्ध के उस पार राहें हैं
मंज़िलें हैं, मुक्त बाहें हैं

देख टूटे पँख में अब भी
उड्डयन की चन्द चाहें हैं

तोड़ दे सारी सलाखें अब
पेड़ पर लाखों पनाहें हैं

बेबसी ताबूत है, यारो !
बन्द इसमें, मौन आहें है

जो कफ़स कमज़ोर है उसपे
देर से मेरी निगाहें हैं