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निशाना / शेखर सिंह मंगलम

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अपनत्व की छननी में सैकड़ों बार तुमको छाना था
बारहा ग़लतियाँ निकलीं मगर तुम्हें अपना माना था

हजारों अच्छाईयों पर एक ग़लती मेरी पड़ गई भारी
हालांकि तुम साथी न थे फ़ायदा तुम्हारा निशाना था

रिश्ते के छज्जों पर खुदगर्ज़ियों के बुने हुए जाले थे
हित साधना ही था तुम्हारा लक्ष्य रिश्ता तो बहाना था।