Last modified on 5 नवम्बर 2008, at 20:54

याद-1 / वेणु गोपाल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:54, 5 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वेणु गोपाल |संग्रह=चट्टानों का जलगीत / वेणु गोप...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तपती और तपाती दोपहर में
    एक साफ़, ठंडे पानी से भरा हुआ लोटा,
उमस भरी रातों में बहुत-बहुत भटक लेने के बाद
     अपनी पसंद की ब्राण्ड वाली कोई सिगरेट
किसी अनजान शहर के किसी मोड़ पे
     अचानक दीख जाने वाला कोई लंगोटिया दोस्त चेहरा

ऎसी ही कुछ होती है तुम्हारी याद। और
     उसका वजूद महसूस करता हूँ मैं
           अपनी ही बेवज़ह मुस्कानों में।

रचनाकाल : 12 मई 1975