Last modified on 5 नवम्बर 2008, at 20:59

याद-2 / वेणु गोपाल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:59, 5 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वेणु गोपाल |संग्रह=चट्टानों का जलगीत / वेणु गोप...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आप
 जेल की कोठरी से
  आसमान देखते हैं
    हरा पौधा देखते हैं
      उजाला देखते हैं
               और

बेकाबू होते
 अपने आपे को
   भरसक काबू करते हुए
     नज़रें फेर लेते हैं। मैं ठीक

इसी तरह
 उसकी याद करता हूँ
   और फिर नहीं करने
      की कोशिश में
         और-और करता हूँ। करता ही
                       चला जाता हूँ।

रचनाकाल : 12 मई 1975