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मोम-गाछ / देवेन्द्र कुमार

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जब जब शाम ढले
एक अदासी
भीतर-बाहर
मोम-गाछ पिघले

वादे-वादे
पन्ने सादे
सिर आँखों
ग़ुमनाम इरादे
ख़ुशनसीब तस्वीर बाद में
हम लकीर पहले

दिन की छत
रातों के मलबे
टूट रहे हैं
रवे दर रवे

आते-जाते
राह बटाते
तुमसे
पेड़ भले
मोम-गाछ पिघले