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कण्ठ की सुराही को / रामकुमार कृषक

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कण्ठ की सुराही को
बून्द का अभाव
किस तरियों पेट-घट भरे !

जिह्वा को
होठों तक खींच
नलकों पर जुट आई प्यास
कूओं की
पेंदियाँ उलीच,

अधुनातन घोर तप करे !

आँखों को
केंचुल से ढाँप
लील रहे मिट्टी का स्वेद
लूओं की
लपटों के साँप,

पग–पग पर आग-सी जरे !

20 मई 1973