छुरियों-काँटों से खाने का
शौक़ आदमी का,
बहुत साफ़ संकेत
नाख़ूनों के बढ़ आने का
हाथ छोटे पड़ जाने का !
देह स्वाद हो गई देह का
ख़ून हुआ पानी
बिम्ब देख हंसती प्यालों में
आदिम शैतानी,
झूठमूठ जूठन खाने का
चाव आदमी का,
बहुत साफ़ संकेत
मित्र-चारा उग आने का
हाथ से हाथ मिलाने का !
राजरोगिणी हुई सभ्यता
दर्शन ऐय्याशी
जा बैठे जनखे जनवासे
जन को शाबाशी,
हर चेहरे में ढल जाने का
हुनर आदमी का,
बहुत साफ़ संकेत
नए नारे गढ़ लाने का
मञ्च से उन्हें भुनाने का !
02 नवम्बर 1974