सावधान...
ख़तरनाक कुत्तों से / कोठी के !
कुर्सी पर
सोफ़े पर
सम्भव है बिस्तर पर
फैल रहे होंगे वे
खुले–खुले जिस्मों से
खेल रहे होंगे या
कुदरती करिश्मों से,
उनकी यह दिनचर्या
उनका यह सम्विधान
आदी वे हड्डी के / बोटी के !
चीन्हे के
पाँवों को
अनचीन्ही गर्दन को
टोह रहे होंगे वे
नथुनों से / दाँतों से
खींच रहे होंगे या
टुकड़ा तक आँतों से,
उनका यह नस्ल - शौक
आखिर वे पूँछवान
जन्तु वही अधुनातन / चोटी के !
19 मई 1975
बच्चन जी ने इस गीत के कथ्याधार और शिल्प का निर्वाह करते हुए बाद में एक गीत की रचना की। वह
बच्चन रचनावली के नौवें खण्ड में शामिल है।