Last modified on 10 नवम्बर 2008, at 20:18

पशु विदाई / सुभाष काक

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:18, 10 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष काक |संग्रह=मिट्टी का अनुराग / सुभाष काक }}<po...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पशु की एक दृष्टि
कितना कह सकती है?

जिसके साथी
बीच-बीच में
लुप्त हो जाते हैं
वह क्या सोचता है
जगत का विधान क्या है?

बहुत क्रंदन होता है
बलि के पूर्व
जीवन दान की याचना
विधिवत है।
उस रोने को
हम भूल जाते हैं।
वह भूलना भी
विधिवत है।

पिपासे¸ व्याकुल प्राणी‚
उर्वर समय की प्रतीक्षा
नहीं कर सकते।

इस काल संघात से
इंद्रियाँ जब
दुर्बल होती हैं
तब पशु से विदाई
सह्य हो जाती है।