भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पशु विदाई / सुभाष काक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पशु की एक दृष्टि
कितना कह सकती है?

जिसके साथी
बीच-बीच में
लुप्त हो जाते हैं
वह क्या सोचता है
जगत का विधान क्या है?

बहुत क्रंदन होता है
बलि के पूर्व
जीवन दान की याचना
विधिवत है।
उस रोने को
हम भूल जाते हैं।
वह भूलना भी
विधिवत है।

पिपासे¸ व्याकुल प्राणी‚
उर्वर समय की प्रतीक्षा
नहीं कर सकते।

इस काल संघात से
इंद्रियाँ जब
दुर्बल होती हैं
तब पशु से विदाई
सह्य हो जाती है।