कल करेंगे
जो भी करना
आज तो, बस, धूप से बातें करें ।
एक मुद्द्त बाद तो
यह लाजवन्ती
द्वार आई है,
प्यार में डूबे हुए
कुछ गुनगुने सम्वाद
अपने साथ लाई है ।
क्या कहेगा कल ज़माना
सोचकर हम क्यों डरें ।
क्या कभी भी एक क्षण
अपनी ख़ुशी से
भोग पाते हैं,
रोटियों के
व्याकरण में ही
समूचा दिन गँवाते हैं ।
इस नियोजित भूमिका को
कल तलक सारांश के घर में धरें ।