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शहतूत के पेड़ / अश्वघोष

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रेशम के कीड़ों की खातिर
खड़े पेड़ शहतूत के ।

पल भर की निद्रा के भीतर
किन आँखों को लेकर झाँकें ।
पत्ती-पत्ती छिन जाएगी
रह जाएँगी नंगी शाखें ।

साक्षी हैं ये मौन दिगम्बर
माली की करतूत के ।

चिन्ता तो फिर भी बच जाती ,
लुट जाता जब सब कुछ अपना ।
आँखें सपना देखें कैसे
सपना तो होता है सपना ।

करते नहीं कामना फल की
चेले ये अवधूत के ।