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योनिक आत्मबोध / दीपा मिश्रा

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रक्तसँ सनल द्वारसँ बाहर आबि
जखनि पहिल बेर वायुक स्पर्श भेटल
बड़ सुखद लागल
अकस्मात!
हमरा दिस ताकैत
हेयपरक दृष्टि आ
बिचकल मुँह देखि
सशंकित भऽ उठलौं
छिया छिया!!
झाँपू झाँपू!! गंदा बात!!
नेनासँ ततबा बेर सुनलहुँ
जे बुझना गेल
हम कोनो निकृष्ट अंग छी
एहि शरीरक
जेकरा बाह्य दुनिया
स्वीकार नै करैये
कनेक ज्ञान मेला पर
दाइक संग जखनि
महादेवक थान जाइत रही त'
शिव मंदिरमे
हमरा पर आसीन लिंगक
सब पूजा करैत छल
किंतु हम त' उपेक्षिते रहैत रही
तेरह बरखक रही हम
एक दिन डेरा गेलहुँ
किछु अचगुत सन लागल
जखनि शोणितक धार
बहय लागल
बुझाओल गेल
जे प्रथम बालक भेल
आब आरो सतर्कताक आवश्यकता
ओना कही त' आब हमरा
अपना प्रति मोह जागल
एकांतमे अपन स्पर्श सुखद लागल
विपरीत लिंगकेँ देखि जेना
स्निग्धता आबि जाइत छल
विवाहक रात्रि
प्रथम संभोग
कौमार्य भंगक संगहि
सुखद पीड़ा सन सुझाव
पूर्ण स्त्रीत्वक प्राप्ति इहा छल की?
तकरा बाद बहुत किछु भेल!
गर्भ एकटा शरीर लेल सुखद अनुभव छल
किंतु ओकर त्राससँ
हम चित्कार कऽ उठलहुँ
एतेक दर्दक आभास नै भेल छल
एकटा नवजीवनकेँ
अनबाक रोमांच ओना
दर्दकेँ बिसरा देलक
शनै: शनै: हम अपनाकेँ
बिसरय लगलौं
धीरे-धीरे जीवन
नीरस होइत गेल
हमर काज की?
हमर इच्छा खत्म?
अपन इच्छाक प्रतिपूर्तिक बाद
फेरल पीठ हमरा
भीतरसँ बेध दैत छल
हम भीतरे भीतर
चित्कार करी
अपनाकेँ अतृप्त राखब
की जीवन इहा थिक?
जतेक सोचलौं
अपनाकेँ चिन्हैत गेलहुँ
नै हम मात्र
शारीरिक सुख लेल नहि बनल छी
हमर अपन स्वतंत्र अस्तित्व अछि
हम अपनासँ अपन इच्छा पुछलहुँ
ओ तृप्ति मात्र शारीरिक नै छल
ओ ककरो पर आश्रित नहि छल
ओ त हमरे भीतर नुकायल छल
आब हमरा कोनो लज्जा नहि छल
आब हमरा कोनो भय नहि
कोनो परंपरा कोनो संस्कारसँ बान्हल नै
हम चिन्ह गेलहुँ अपनाकेँ
भले किछु विलंब भेल किन्तु
आब हम बुझि गेलियै जे कियाक
पराशक्ति पर अवस्थित लिंग
पूजल जाइत छैक
आधार तहियो हमही रही
अहुखन हमहीं छी
आर भविष्योमे हमही रहब