Last modified on 21 नवम्बर 2008, at 07:27

जैसी तुम से बिछुड़ कर मिलीं हिचकियाँ/ रामप्रसाद शर्मा "महर्षि"

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:27, 21 नवम्बर 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जैसी तुम से बिछुड़ कर मिलीं हिचकियाँ
ऐसी मीठी तो पहले न थीं हिचकियाँ

याद शायद हमें कोई करता रहा
दस्तकें दरपे देती रहीं हिचकियाँ

मैंने जब-जब भी भेजा है उनके लिए
मेरा पैग़ाम लेकर गईं हिचकियाँ

फासला दो दिलों का भी जाता रहा
याद के तार से जब जुड़ीं हिचकियाँ

जब से दिल उनके ग़म में शराबी हुआ
तब से हमको सताने लगीं हिचकियाँ

उनके ग़म में लगी आंसुओं की झड़ी
रोते-रोते हमारी बँधीं हिचकियाँ

उनको ‘महरिष’, तिरा नाम लेना पड़ा
तब कहीं जाके उनकी रुकीं हिचकियाँ.