Last modified on 15 जुलाई 2024, at 04:11

रूमाल / ग़स्सान ज़क़तान / निधीश त्यागी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:11, 15 जुलाई 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ग़स्सान ज़क़तान |अनुवादक=निधीश त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हमारे बीच कहने को कुछ न बचा
सब उस ट्रेन में चला गया जिसने अपनी सीटी
उस धुएँ में छुपा ली जो बादल न बन सका
उस चले जाने में, जिसने तुम्हारे हाथ पाँव बटोरा किए

कुछ भी नहीं बचा कहने को हमारे बीच
इसलिए रहने देते हैं तुम्हारी मौत को
चमकती चाँदी की गहरी कौंध
और रहने देते हैं उन शहरों के सूरज को
तुम्हारे कंधों पर रखे गुलाब
के अक्स में.