Last modified on 18 जनवरी 2025, at 10:01

सागर / ऋचा दीपक कर्पे

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:01, 18 जनवरी 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋचा दीपक कर्पे |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दूर तक फैला असीम सागर
और सागर की गहराइयाँ
गहराइयों के बढ़ते चले जाने से
बढ़ता चला जाता है दबाव
गहराइयों में गंभीरता है...
और उथले जीवन में अल्हड़पन...

सागर का नीला-हरा पानी
दूर-दूर तक कोई किनारा नही
बढ़ता जाता है विस्तार निरंतर
अकेलापन उतना ही गहराता है
छोटे-से दायरे में जीवन है
और विस्तार में खालीपन...

सागर के भीतर फैली
एक अलहदा-सी चमकीली दुनिया
सीपियों में बंद पानी की बूंद
तय है उसका मोती बन जाना
बाहर हर खारी बूंद आँसू है
और सागर में बेशकीमती है खारापन!