Last modified on 9 दिसम्बर 2008, at 21:28

वे / प्रभात

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:28, 9 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभात |संग्रह= }} <Poem> वह पानी है और उसके पास बातों...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


वह पानी है
और उसके पास बातों के कंकड़ हैं

वह गहरी ही गहरी होती जाती है
उससे यह सहा नहीं जाता है

वह कहीं खो जाती है
वह बात का कंकड़-सा डालकर
उसे चौंकाता है

वह सिहर जाती है
वह उसके साथ
यों ही रहती है