Last modified on 30 दिसम्बर 2008, at 21:49

जब कभी / अर्चना भैंसारे

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:49, 30 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना भैंसारे |संग्रह= }} <Poem> और जब कभी मैली हो जा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

और जब कभी
मैली हो जाती रुह

तब याद आती
तुम्हारे मन में बहते
मीठे झरने की

कि जिसमें डूबकर
साफ़ करती हूँ आत्मा अपनी।