Last modified on 18 जनवरी 2009, at 04:11

भय मुक्त / अग्निशेखर

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:11, 18 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अग्निशेखर |संग्रह=मुझसे छीन ली गई मेरी नदी / अग्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

घर के अन्दर भी ख़तरा था
घर से बाहर भी था जोख़िम
उन्होंने खाया तरस
हमारी हालत पर
और एक-एक कर फूँक डाले
हमारे घर
अब न अन्दर ख़तरा है
न बाहर जोख़िम