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भय मुक्त / अग्निशेखर
Kavita Kosh से
घर के अन्दर भी ख़तरा था
घर से बाहर भी था जोख़िम
उन्होंने खाया तरस
हमारी हालत पर
और एक-एक कर फूँक डाले
हमारे घर
अब न अन्दर ख़तरा है
न बाहर जोख़िम