आ रहा स्मरण प्रियतम! कहते थे ”सुमुखि! स्वर्ग का नन्दन वन।
इस वृन्दावन से तुल न कभीं सकता इसका चिन्मय कण-कण।
अगणित उडु नीलाम्बर नूतन घन सोम-रश्मि-रंजिता निशा।
दिनमान कमलिनी-कुल-वल्लभ यह धेनु धूलि यह अरूण उषा।
यह कोकिल-रव-मुखरित वनस्थली यह जननी-कृत शिशु-चुम्बन।
यह प्रेयसि-प्रियतम प्रणय-कलह यह आलिंगन यह अभिनन्दन।“
हे वृन्दावनचारी! विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥83॥