Last modified on 18 फ़रवरी 2009, at 14:05

सिर्फ़ प्रतीक्षा / आग्नेय

गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:05, 18 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आग्नेय |संग्रह=मेरे बाद मेरा घर / आग्नेय }} <Poem> कही...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कहीं कोई सूखा पेड़
फिर हरा हो गया।
कहीं कोई बादलों पर
फिर इन्द्रधनुष लिख गया।
कहीं कोई शाम का सूरज
फिर डूब गया।
हम भुतही पुलियों पर
पतलूनों की जेबों में
बादल, इन्द्रधनुष, डूबते सूरज
भरे किसकी प्रतीक्षा करते हैं।
अरे! वह हरा पेड़ तो
फिर से सूख गया!
अरे! वह लिखा इन्द्रधनुष
फिर से बादल हो गया!
अरे! वह डूबता सूरज तो
सिर्फ़ प्रतीक्षा है!