नदी से दौड़ना
सीख़ता मृगछौना
आकाश के आमंत्रण पर
निरंतार ऊँचा
उठना चाहता देवदार
बर्फ़ के साथा-साथ
जमाता और पिघलाता पहाड़
फूली के रंग
रचा लेती तितली
अपने पँखों में
ग्वाले का गीत दोहराता
सामने का विकराल ढाँक
शंख की तरह बजता
मंदिर के आँगन का
श्वान
दुनिया के राग में रोता
नवजात शिशु
ईश्वर के समक्ष
एक साथ कराहती
प्रेम करती
उसकी ओर अग्रसर
मुक्ति की कामना में
सृष्टि
मई 1989