भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राग / तुलसी रमण
Kavita Kosh से
नदी से दौड़ना
सीख़ता मृगछौना
आकाश के आमंत्रण पर
निरंतार ऊँचा
उठना चाहता देवदार
बर्फ़ के साथा-साथ
जमाता और पिघलाता पहाड़
फूली के रंग
रचा लेती तितली
अपने पँखों में
ग्वाले का गीत दोहराता
सामने का विकराल ढाँक
शंख की तरह बजता
मंदिर के आँगन का
श्वान
दुनिया के राग में रोता
नवजात शिशु
ईश्वर के समक्ष
एक साथ कराहती
प्रेम करती
उसकी ओर अग्रसर
मुक्ति की कामना में
सृष्टि
मई 1989