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कानन दै अँगुरी रहिहौं / रसखान

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लेखक: रसखान

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कानन दै अँगुरी रहिहौं, जबही मुरली धुनि मंद बजैहै।

माहिनि तानन सों रसखान, अटा चड़ि गोधन गैहै पै गैहै॥

टेरी कहाँ सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझैहै।

माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहै, न जैहै, न जैहै॥