कवि: अमीर खुसरो
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लिपट लिपट के वा के सोई
छाती से छाती लगा के रोई
दांत से दांत बजे तो ताड़ा।
ऐ सखी साजन? ना सखी, जाड़ा!
ऊंची अटारी पलंग बिछायो
मैं सोई मेरे सिर पर आयो
खुल गई अंखियां भयी आनंद।
ऐ सखी साजन? ना सखी, चांद!
वो आए तब शादी होवे
उस बिन दूजा और न कोय
मीठे लागें वा के बोल।
ऐ सखी साजन? ना सखी, ढोल!
आप हिले और मोहे हिलाए
वा का हिलना मोए मन भाए
हिल हिल के वो हुआ निसंखा।
ऐ सखी साजन? ना सखी, पंखा!
सगरी रैन छतियां पर राख
रूप रंग सब वा का चाख
भोर भई जब दिया उतार।
ऐ सखी साजन? ना सखी, हार!
पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो
जब उतरयो तो पसीनो आयो
सहम गई नहीं सकी पुकार।
ऐ सखी साजन? ना सखी, बुखार!
सेज पड़ी मोरे आंखों आए
डाल सेज मोहे मजा दिखाए
किस से कहूं अब मजा में अपना।
ऐ सखी साजन? ना सखी, सपना!
बखत बखत मोए वा की आस
रात दिना ऊ रहत मो पास
मेरे मन को सब करत है काम।
ऐ सखी साजन? ना सखी, राम!