जब नसों में पीढ़ियों की, हिम समाता है
शब्द ऐसे ही समय तो काम आता है
बर्फ पिघलाना ज़रूरी हो गया , चूंकि
चेतना की हर नदी पर्वत दबाता है
बालियों पर अब उगेंगे धूप के अक्षर
सूर्य का अंकुर धरा में कुलबुलाता है
जब नसों में पीढ़ियों की, हिम समाता है
शब्द ऐसे ही समय तो काम आता है
बर्फ पिघलाना ज़रूरी हो गया , चूंकि
चेतना की हर नदी पर्वत दबाता है
बालियों पर अब उगेंगे धूप के अक्षर
सूर्य का अंकुर धरा में कुलबुलाता है