भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तरकश / ऋषभ देव शर्मा
Kavita Kosh से
तरकश
रचनाकार | ऋषभ देव शर्मा |
---|---|
प्रकाशक | तेवरी प्रकाशन, खतौली |
वर्ष | 1996 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविताएँ |
विधा | तेवरी |
पृष्ठ | 72 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- अब न बालों और गालों की कथा लिखिए / ऋषभ देव शर्मा
- मैं हिंदू हूँ मैं मुस्लिम हूँ मैं मस्जिद मैं मंदिर हूँ / ऋषभ देव शर्मा
- बौनी जनता, ऊंची कुर्सी, प्रतिनिधियों का कहना है / ऋषभ देव शर्मा
- धुंध है घर में उजाला लाइए / ऋषभ देव शर्मा
- आदमकद मिल जाए कोई दल-दल द्वार-द्वार भटका / ऋषभ देव शर्मा
- हटो, यह रास बंद करो / ऋषभ देव शर्मा
- उगी रोटियाँ देख बाली गेहूँ की / ऋषभ देव शर्मा
- शक्ति का अवतार हैं ये रोटियाँ / ऋषभ देव शर्मा
- यह नए दिन का उजाला देख लो / ऋषभ देव शर्मा
- कुछ लोग जेब में उसे धर घूम रहे हैं / ऋषभ देव शर्मा
- जब नसों में पीढियों की, हिम समाता है / ऋषभ देव शर्मा
- हर दिन बड़ा है आपका अपना न एक दिन / ऋषभ देव शर्मा
- एक ऊँचा तख्त जिस पर भेड़िया आसीन है / ऋषभ देव शर्मा
- एक नेता मंच पर कल रो पड़ा / ऋषभ देव शर्मा
- किसी को भून डालें वे हाथ में स्टेनगन लेकर / ऋषभ देव शर्मा
- पुरखों ने कर्ज़ लिया, पीढ़ी को भरने दो / ऋषभ देव शर्मा
- कच्ची नीम की निंबौरी, सावन अभी न अइयो रे / ऋषभ देव शर्मा
- माला-टोपी ने मिल करके कुछ ऐसा उपचार किया / ऋषभ देव शर्मा
- हँस के हरेक ज़हर को पी जाय फकीरा / ऋषभ देव शर्मा
- एक बड़े ऊँचे फाटक से आग उठी, सडकों लहरी / ऋषभ देव शर्मा
- अब भारत नया बनाएँगे, हम वंशज गाँधी के / ऋषभ देव शर्मा
- गलियों की आवाज़ आम है , माना ख़ास नहीं होगी / ऋषभ देव शर्मा
- योगी बन अन्याय देखना, इसको धर्म नहीं कहते हैं / ऋषभ देव शर्मा
- मंच पर केवल छुरे हैं, या मुखौटे हैं / ऋषभ देव शर्मा
- दृष्टि धुँधली, स्वाद कडुआने लगा / ऋषभ देव शर्मा
- पग-पग घर-घर हर शहर, ज्वालामय विस्फोट / ऋषभ देव शर्मा
- कुर्सी का आदेश कि अब से, मिल कर नहीं चलोगे / ऋषभ देव शर्मा
- माना कि भारतवर्ष यह संयम की खान है / ऋषभ देव शर्मा
- नस्ल के युद्ध हैं / ऋषभ देव शर्मा
- हिंसा की दूकान खोलकर, बैठे ऊँचे देश / ऋषभ देव शर्मा
- लोकशाही के सभी सामान लाएँगे / ऋषभ देव शर्मा
- अपने हक में वोट दिला के, क्या उत्ती के पाथोगे / ऋषभ देव शर्मा
- पाक सीमा पर बसे इक गाँव में यह हाल देखा / ऋषभ देव शर्मा
- क्या हुआ जो गाँव में घर-घर अँधेरा है / ऋषभ देव शर्मा
- धार लगा कर सब आवाजें, आरी करनी हैं / ऋषभ देव शर्मा
- औंधी कुर्सी, उस पर पंडा / ऋषभ देव शर्मा
- कुर्ते की जेबें खाली हैं, औ' फटा हुआ है पाजामा / ऋषभ देव शर्मा
- मानचित्र को चीरती, मज़हब की शमशीर / ऋषभ देव शर्मा
- सभी रंग बदरंग हैं, कैसे खेलूँ रंग? / ऋषभ देव शर्मा
- लोगों ने आग सही कितनी / ऋषभ देव शर्मा
- मिलीं शाखें गिलहरी को इमलियों की / ऋषभ देव शर्मा
- रक्त का उन्माद हैं ये युद्ध की बातें / ऋषभ देव शर्मा
- झुग्गियों को यों हटाया जा रहा है / ऋषभ देव शर्मा
- घर के कोने में बैठे हो लगा पालथी, भैया जी / ऋषभ देव शर्मा
- बोला कभी तो बोल की मुझको सज़ा मिली / ऋषभ देव शर्मा
- ठीक है - जो बिक गया , खामोश है / ऋषभ देव शर्मा
- क्या पता था खेल ऐसे खेलने होंगे / ऋषभ देव शर्मा
- हो न जाए मान में घाटा किसी के यों / ऋषभ देव शर्मा
- पेट भरा हो तो सूझे है, ताज़ा रोटी, बासी रोटी / ऋषभ देव शर्मा
- राजपथों पर कोलाहल है, संविधान की वर्षगाँठ है / ऋषभ देव शर्मा
- रात उनके नाचघर में आ गई वर्षा / ऋषभ देव शर्मा
- आज हाथों को, सुनो, आरी बना लो, साथियो / ऋषभ देव शर्मा
- घर से बाहर नहीं निकलना, आज शहर में कर्फ्यू है / ऋषभ देव शर्मा
- हर दफ्तर में एक बड़ी सी, कुर्सी पाई जाती है / ऋषभ देव शर्मा
- आग के व्यापारियों ने बाग़ को झुलसा दिया / ऋषभ देव शर्मा
- चोरों का सम्मान आजकल मेरे भैया / ऋषभ देव शर्मा
- सुनो, बगावत कर रहे, अब सरसों के खेत / ऋषभ देव शर्मा
- शहर तुम्हारा? हमने देखा शहर तुम्हारा / ऋषभ देव शर्मा
- धर्म, भाषा, जाति, दल का, आजकल आतंक है / ऋषभ देव शर्मा
- काव्य को अंगार कर दे भारती / ऋषभ देव शर्मा