भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धुंध है घर में उजाला लाइए / ऋषभ देव शर्मा
Kavita Kosh से
धुंध है घर में उजाला लाइये
रोशनी का इक दुशाला लाइये
केचुओं की भीड़ आँगन में बढ़ी
आदमी अब रीढ़ वाला लाइये
जम गया है मॉम सारी देह में
गर्म फौलादी निवाला लाइये
जूझने का जुल्म से संकल्प दे
आज ऐसी पाठशाला लाइये