Last modified on 27 अप्रैल 2009, at 00:11

हिंसा की दूकान खोलकर, बैठे ऊँचे देश / ऋषभ देव शर्मा

चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:11, 27 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा }} <Poem> हि...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 
हिंसा की दूकान खोलकर, बैठे ऊँचे देश
आशंका से दबी हवाएँ, आतंकित परिवेश

अंतरिक्ष तक पहुँच गया है, युद्धों का व्यापार
राजनीति ने नक्षत्रों में, भरा घृणा-विद्वेष

गर्म हवाओं के पंखों पर, लदा हुआ बारूद
‘खुसरो’ कैसे घर जाएगा, रैन हुई चहुं देश

महाशक्तियाँ रचा रही हैं, सामूहिक नरमेध
हाथ बढ़ाकर अभी खींच लो, कापालिक के केश