Last modified on 27 अप्रैल 2009, at 00:20

घर के कोने में बैठे हो लगा पालथी, भैया जी / ऋषभ देव शर्मा

चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:20, 27 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा }} <Poem> घर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 
घर के कोने में बैठे हो लगा पालथी, भैया जी
खुले चौक पर आज आपका एक बयान ज़रूरी है

झंडों-मीनारों-घंटों ने बस्ती पर हल्ला बोला
चिडियाँ चीखें, कलियाँ चटखें शर संधान ज़रूरी है

मैं सूरज को खोज रहा था संविधान की पुस्तक में
मेरा बेटा बोला — पापा. रोशनदान ज़रूरी है

जिनके भीतर तंग सुरंगें, अंधकूप तक जाती हैं
उन दरवाजों पर खतरे का, बड़ा निशान ज़रूरी हैं.