Last modified on 24 मई 2009, at 17:19

पद / सूरदास

सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:19, 24 मई 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे।

जैसे उड़ि जहाज की पंछि, फिरि जहाज पर आवै॥

कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै।

परम गंग को छाँड़ि पियसो, दुरमति कूप खनावै॥

जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल खावै।

'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै॥