Last modified on 4 सितम्बर 2006, at 14:15

शारदीया / राम विलास शर्मा

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:15, 4 सितम्बर 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कवि: राम विलास शर्मा

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

सोना ही सोना छाया आकाश में,

पश्चिम में सोने का सूरज डूबता,

पका रंग कंचन जैसे ताया हुआ,

भरे ज्वार के भुट्टे पक कर झुक गये ।

"गला-गला" कर हाँक रही गुफना लिये,

दाने चुगती हुईं गलरियों को खड़ी,

सोने से भी निखरा जिस का रंग है,

भरी जवानी जिस की पक कर झुक गयी ।