Last modified on 29 मई 2009, at 18:44

क्यों / केशव शरण

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:44, 29 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव शरण |संग्रह=जिधर खुला व्योम होता है / केशव श...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

धूप की यात्रा में
सुबह शामिल होते हैं जो
शाम को बुझ जाते हैं क्यों?

क्या मंज़िल पर पहुँच जाते हैं वे?
या मंज़िल नहीं पाते हैं वे?