Last modified on 21 जुलाई 2009, at 18:59

ख़ुशबू / केशव शरण

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:59, 21 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव शरण |संग्रह=जिधर खुला व्योम होता है / केशव श...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक हाथ से
जब दूसरे या तीसरे हाथ में जाती है
मंद पड़ जाती है ख़ुशबू

एक के बाद
एक को छोड़
जब हम लपकते हैं
किसी और इरादे की ओर

यही होता है