Last modified on 4 अक्टूबर 2006, at 18:32

खेलत फाग दुहूँ तिय कौ / बिहारी

डॉ॰ व्योम (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 18:32, 4 अक्टूबर 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लेखक: बिहारी

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

खेलत फाग दुहूँ तिय कौ मन राखिबै कौ कियौ दाँव नवीनौ

प्यार जनाय घरैंनु सौं लै, भरि मूँठि गुलाल दुहूँ दृग दीनौ

लोचन मीडै उतै उत बेसु, इतै मैं मनोरथ पूरन कीनौ

नागर नैंक नवोढ़ त्रिया, उर लाय चटाक दै चूँबन लीनौ।