भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खेलत फाग दुहूँ तिय कौ / बिहारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


खेलत फाग दुहूँ तिय कौ मन राखिबै कौ कियौ दाँव नवीनौ
प्यार जनाय घरैंनु सौं लै, भरि मूँठि गुलाल दुहूँ दृग दीनौ
लोचन मीडै उतै उत बेसु, इतै मैं मनोरथ पूरन कीनौ
नागर नैंक नवोढ़ त्रिया, उर लाय चटाक दै चूँबन लीनौ।