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अस्वीकृति / इला प्रसाद

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मैं तलछट सी निकालकर

फेंक दी गई हूँ

किनारे पर

लहरों को मेरा

साथ बहना

रास नहीं आया

 

मैं न शंख थी

न सीपी

कि चुन ली गई होती

किन्ही उत्सुक निगाहों से

रेत थी

रेत सी रौंदी गई

काल के क्रूर हाथों से