Last modified on 16 सितम्बर 2009, at 19:38

सुनो सागर / कुमार रवींद्र

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:38, 16 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |संग्रह= }} <Poem> वक्त बीता आँख जब बहत...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वक्त बीता
आँख जब बहती नदी थी
दूसरों के दर्द को
महसूस करने की सदी थी

चाँद भी तब था नहीं हरदम
अधेरे पाख में
सुनो सागर!

नेह करुणा की नदी वह
अभी पिछले दिनों सूखी
चल रही थीं बहुत पहले से
हवाएँ तेज़ रुखी

मर चुकी हैं कोपलें भी आख़िरी
इस शाख में
सुनो सागर!

बूँद भर जल ही बहुत
जो आँख को सागर करेगा
मेंह बन कर वही
सूखी हुई नदियों को भरेगा

प्राण फूटेगा उसी क्षण चिता की
इस राख में
सुनो सागर!