Last modified on 30 अक्टूबर 2009, at 07:58

संसार / निदा फ़ाज़ली

अजय यादव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:58, 30 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निदा फ़ाज़ली |संग्रह=आँखों भर आकाश / निदा फ़ाज़…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फैलती धरती
खुला आकाश था
मैं...
चाँद, सूरज, कहकशाँ, कोह्सार, बादल
लहलहाती वादियाँ, सुनसान जंगल
मैं ही मैं
फैला हुआ था हर दिशा में
जैसे-जैसे
आगे बढ़ता जा रहा हूँ
टूटता, मुड़ता, सिकुड़ता जा रहा हूँ
कल
ज़मीं से आस्माँ तक
मैं ही मैं था
आज
इक छोटा-सा कमरा बन गया हूँ