रितु पावस आई या भागन ते संग लाल के कुंजन मेँ बिहरौ ।
नहिँ पाइहौ औसर ऎसो भटू अब काहे को लाज लजाइ मरौ ।
गुरु लोग औ चौचंदहाइन सोँ बिरथा केहि कारन बीर डरौ ।
चलि चाखौ सुधा अभिलाखैं भरौ यहि पाखैँ पतिब्रत ताखैँ धरौ ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।