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नेतृत्व / श्रीकृष्ण सरल

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रचना संदर्भरचनाकार:  श्रीकृष्ण सरल
पुस्तक:  प्रकाशक:  
वर्ष:  पृष्ठ संख्या:  

नेता, समाज को है नेतृत्व दिया करता

संकट आएँ, वह उनको स्वयं झेलता है,

वह झोंक नहीं देता लोगों को भट्टी में

खतरे आते, वह उनसे स्वयं खेलता है ।


योग्यता अपेक्षित होती है हर नेता में

अपने समाज को सही दिशा में ले जाए,

पहचान समय की नब्ज़, सही निर्णय ले वह

ले सूझबूझ से काम, सफलता वह पाए ।


नेतृत्व न रहता पीछे 'बढ़े चलो !' कह कर

नेतृत्व सदा आगे चल कर दिखलाता है,

नेतृत्व न खाता पीछे रह शीतल बयार

वह खाता तो, छाती पर गोली खाता है ।


केवल कुछ लोगों को हाँके, नेतृत्व न वह

अपने समाज को दिशा-दान वह देता है,

नेतृत्व न देता लच्छेदारी बातों को

निज आन-वान के लिए जान वह देता है ।


पिछलग्गू पैदा कर लेना नेतृत्व नहीं

नेतृत्व नहीं हू-हू कर पत्थर फिकवाता,

नेतृत्व देश के दीवाने पैदा करता

नेतृत्व, लाठियों से अपने सिर सिकवाता ।



नेतृत्व देखता देश, देश की खुशहाली

नेतृत्व नहीं देखता स्वयं को, अपनों को,

नेतृत्व, हमेशा खुदी मिटा कर चलता है

पालता नहीं आँखों में सुख के सपनों को ।