Last modified on 24 मार्च 2008, at 01:01

सैनिक / श्रीकृष्ण सरल

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:01, 24 मार्च 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मारने और मरने का काम कौन लेता

यह कठिन काम जो करता, वह सैनिक होता,

जैसे चाहे, जब चाहे मौत चली आए

जो नहीं तनिक भी डरता, वह सैनिक होता ।


यह नहीं कि वह वेतन-भोगी ही होता है

वह मातृभूमि का होता सही पुजारी है,

अर्चन के हित अपने जीवन को दीप बना

उसने माँ की आरती सदैव उतारी है ।


पैसा पाने के लिए कौन जीवन देगा

जीवन तो धरती-माँ के लिए दिया जाता,

धरती के रखवाले सैनिक के द्वारा ही

है जीवन का सच्चा सम्मान किया जाता ।


यह नहीं कि वह अपनी ही कुर्बानी देता

दुख के सागर में वह परिवार छोड़ जाता,

जब अपनी धरती-माता की सुनता पुकार

तिनके जैसे सारे सम्बन्ध तोड़ जाता ।


सैनिक, सैनिक होता है, वह कुछ और नहीं

वह नहीं किसी का भाई पुत्र और पति है,

कर्त्तव्य-सजग प्रहरी वह धरती माता का

जो पुरस्कार उसका सर्वोच्च, वीर-गति है ।


सैनिक का रिश्ता होता अपनी धरती से

वह और सभी रिश्तों से ऊपर होता है,

जब जाग रहा होता सैनिक, हम सोते हैं

वह हमें जगाने, चिर-निद्रा में सोता है ।