Last modified on 12 नवम्बर 2009, at 02:10

समर्पण / मोहन सगोरिया

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:10, 12 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन सगोरिया |संग्रह=जैसे अभी-अभी / मोहन सगोरिया…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पाषाण शिला ज्यों धँसी
दूब में

बदली छाई
घिर आई
साँझ... गहराई

चूमा माथ
लगा ज्यों
झुक गया आकाश।